रोड है तो मवेशी बांध दिये है, पत्थर रख दिये है-सरकारी सम्पति का कोई वारिश नहीं है। जितना ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल कर ले। रोड आपके लिये है न की कोई और दूसरा गाँव के लोग आयेंगे।
संचौरा, सिंघिया और ख़िरभोजना कुछ ऐसे गाँव है- जहां गाँव से निकलने में मवेशी के कारण 30 मिनट लग जाएगा। मात्र 1 किलोमीटर रास्ता में।
घर में पंखा है, दरवाज़ा है- सबके लिए पैसा है लेकिन बच्चों का जूता नहीं ख़रीदा जा सकता है। दो घंटा बच्चों को घर में बैठा के शाम में नहीं पढ़ाया जा सकता है, विधालय जाकर नहीं पहुँचाया जा सकता है, विधालय जाने से पहले कॉपी किताब है या नहीं इसको शायद ही कोई माता पिता देखते होंगे।ये स्थिति सरकारी विधालय में पड़ाने वाले माता पिता का है।
ज़रूरत है- गाँव के सभी लोग एकजुट, स्वार्थ से आगे निकल कर सामाजिक विचार करे। गाँव की दशा बदलने के लिए किसी के ऊपर आरोप लगाने से बेहतर होगा- सबसे पहले अपना दायित्व का निर्वहन करे। ये हम सब और परिवार के भविष्य के लिए ज़रूरत है।
आइए मिलकर प्रयास करे- आत्मनिर्भर गाँव के लिए। गाँव के समस्या के ऊपर गाँव के लोगो के द्वारा बैठ कर चर्चा करना ज़रूरी है। कैसे समस्या का निदान हो।